A.R. Rahman Honoured with Lakshminarayana International Award: Celebrating India’s Global Musical Legacy
ए. आर. रहमान को लक्ष्मीनारायण अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार: जब संगीत वैश्विक संस्कृति की साझा भाषा बनता है
भारतीय संगीत के इतिहास में कुछ क्षण ऐसे होते हैं, जब किसी कलाकार का सम्मान केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं रह जाता, बल्कि वह पूरे देश की सांस्कृतिक चेतना का उत्सव बन जाता है। 15 दिसंबर 2025 को ए. आर. रहमान को मिलने वाला लक्ष्मीनारायण अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार ऐसा ही एक क्षण है। यह सम्मान न सिर्फ एक महान संगीतकार को समर्पित है, बल्कि उस विचार को भी मान्यता देता है, जिसमें संगीत सीमाओं, भाषाओं और परंपराओं से ऊपर उठकर मानवता को जोड़ता है।
चेन्नई की ऐतिहासिक रसिका रंजनी सभा में आयोजित होने वाला यह समारोह लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्यूजिक फेस्टिवल (LGMF) 2025 के 35वें संस्करण का कर्टेन-रेज़र होगा। प्रतीकात्मक रूप से यह वही शहर है, जहाँ से रहमान की संगीत यात्रा ने आधुनिक भारतीय ध्वनि को एक नई दिशा दी और जहाँ कर्नाटक संगीत की गहरी जड़ें आज भी जीवित हैं।
लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्यूजिक फेस्टिवल: परंपरा और प्रयोग का संगम
1992 में प्रख्यात वायलिन वादक डॉ. एल. सुब्रमण्यम द्वारा स्थापित यह फेस्टिवल उनके पिता और गुरु प्रो. वी. लक्ष्मीनारायण की स्मृति को समर्पित है। इसका मूल दर्शन अत्यंत सरल लेकिन गहन है—
संगीत को वर्गीकृत नहीं, बल्कि संवादात्मक बनाना।
कार्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत से लेकर जैज़, वेस्टर्न क्लासिकल, रॉक और फोक तक, यह मंच पिछले तीन दशकों से विभिन्न शैलियों के बीच सेतु का कार्य करता रहा है। यह कोई संयोग नहीं कि इस मंच पर एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और येहुदी मेनुहिन जैसे दिग्गजों की उपस्थिति रही है।
लक्ष्मीनारायण अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, जिसकी शुरुआत 1997 में हुई, उन्हीं कलाकारों को दिया जाता है जिन्होंने कला को सीमाओं से मुक्त कर समाज और संस्कृति को समृद्ध किया हो। इस दृष्टि से ए. आर. रहमान इस सम्मान के सबसे स्वाभाविक पात्र प्रतीत होते हैं।
ए. आर. रहमान: भारतीय सिनेमा की ध्वनि-क्रांति
जब 1992 में “रोज़ा” रिलीज़ हुई, तब किसी ने शायद यह नहीं सोचा था कि यह फिल्म भारतीय फिल्म संगीत की भाषा ही बदल देगी। रहमान ने पारंपरिक रागात्मकता को आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक साउंड, अंतरराष्ट्रीय ऑर्केस्ट्रेशन और नई टेक्नोलॉजी के साथ जोड़कर एक नई सौंदर्य दृष्टि गढ़ी।
दो ऑस्कर, सात राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, पद्मश्री और पद्म भूषण—ये सम्मान रहमान की उपलब्धियों की गणना भर हैं। उनकी वास्तविक विरासत उन धुनों में बसती है, जो “दिल से” के जुनून, “बॉम्बे” की पीड़ा, “लगान” के आत्मविश्वास और “स्लमडॉग मिलियनेयर” की वैश्विक ऊर्जा को एक साथ समेटे हुए हैं।
रहमान का संगीत भारतीय होते हुए भी वैश्विक है और वैश्विक होते हुए भी अपनी मिट्टी से जुड़ा है। यही द्वैत उन्हें समकालीन संगीतकारों से अलग करता है।
संगीत से आगे: संस्थान, शिक्षा और सामाजिक सरोकार
ए. आर. रहमान की भूमिका केवल एक फिल्म संगीतकार तक सीमित नहीं है।
- पंचथन रिकॉर्ड इन जैसे स्टूडियो भारतीय संगीत उत्पादन को अंतरराष्ट्रीय मानकों तक ले गए।
- केएम म्यूजिक कंज़र्वेटरी ने शास्त्रीय और आधुनिक संगीत शिक्षा को नई पीढ़ी के लिए सुलभ बनाया।
- सनशाइन ऑर्केस्ट्रा जैसे सामाजिक प्रयासों ने यह सिद्ध किया कि संगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम भी हो सकता है।
यह वही दृष्टि है, जो लक्ष्मीनारायण फेस्टिवल के मूल विचार से गहराई से जुड़ती है—संगीत को समाज के केंद्र में रखना।
निष्कर्ष: सम्मान से आगे का संदेश
लक्ष्मीनारायण अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार ए. आर. रहमान को दिए जाने का अर्थ केवल एक महान कलाकार को सम्मानित करना नहीं है। यह उस सांस्कृतिक दर्शन की पुष्टि है, जिसमें भारतीय संगीत वैश्विक संवाद का नेतृत्व कर सकता है।
आज जब दुनिया सांस्कृतिक ध्रुवीकरण और पहचान के संकट से जूझ रही है, रहमान का संगीत हमें याद दिलाता है कि कला विभाजन नहीं, बल्कि संवाद रचती है।
पूर्व और पश्चिम, शास्त्रीय और आधुनिक, तकनीक और परंपरा—इन सबके बीच जो सेतु बनता है, वही सच्ची सांस्कृतिक विरासत है।
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